⭐️⭐️⭐️ (3/5)
Maalik कोई नई कहानी नहीं कहती, लेकिन जिस अंदाज़ में इसे पेश किया गया है, वह दर्शकों को बांधने की ताकत रखता है। फिल्म एक आम इंसान के मालिक बनने की यात्रा है – और वह सफर खून, हिंसा, राजनीति, प्रेम और धोखे से होकर गुजरता है। इस फिल्म में राजकुमार राव एक ऐसे किरदार में नजर आते हैं, जैसा आपने उन्हें पहले कभी नहीं देखा होगा। यह फिल्म न सिर्फ एक गैंगस्टर की कहानी है, बल्कि एक सिस्टम के शिकार आम आदमी की आवाज़ है।
किरदारों की गहराई
🔥 राजकुमार राव – एक आम से खास बनने की यात्रा
फिल्म का नाम ही Maalik है, और इसका सही अर्थ तभी स्पष्ट होता है जब आप रजकुमार राव के किरदार की परतें खोलते हैं। उनका किरदार एक आम लड़का है, जो एक अन्याय से क्रोधित होकर धीरे-धीरे अपराध की दुनिया में कदम रखता है। लेकिन फिल्म सिर्फ उसके बाहरी संघर्ष की कहानी नहीं है – यह उसके मन के भीतर की आग, आक्रोश और असहायता को भी दिखाती है।
राजकुमार राव का ट्रांसफॉर्मेशन – एक आम इंसान से एक निर्दयी माफिया लीडर बनने का – पूरी तरह विश्वसनीय और दर्शनीय है। उनके डायलॉग्स, बॉडी लैंग्वेज, लहजा, और आंखों की गहराई इस किरदार को जीवन्त बनाते हैं।
❤️ मनीषी छिल्लर – प्रेम और पीड़ा के बीच झूलता किरदार
उनका किरदार एक ऐसी पत्नी का है जो अपने पति को खो देने के डर और उसके बदलते रूप से जूझ रही है। हालांकि उनके इमोशनल सीन्स कमजोर हैं, लेकिन कुछ दृश्यों में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है। खासकर शादी के बाद वाले सीन्स में उनकी बॉन्डिंग और संवाद ठीक-ठाक हैं।
👮♂️ प्रोसेनजीत चटर्जी – बेअसर इंस्पेक्टर
प्रोसेनजीत चटर्जी जैसा सशक्त अभिनेता एक कमजोर रोल में डाले गए हैं। उनका किरदार न तो ग्रे है, न ही पॉवरफुल। “मेरे हाथ बंधे हुए हैं” जैसे डायलॉग्स उन्हें और भी कमजोर बनाते हैं। एक गैंगस्टर ड्रामा में पुलिस अफसर का प्रभावशाली होना जरूरी होता है, लेकिन यहां ये मिसिंग है।
💥 सपोर्टिंग कास्ट – एक साइलेंट स्पाइन
- सौरभ शुक्ला एक बार फिर साबित करते हैं कि वो फ्रेम में हों या ना हों, उनका असर जरूर होता है।
- अंशुमान पुष्कर की दोस्ती, वफादारी और अंततः गद्दारी की जर्नी बहुत प्रभावी है।
- स्वानंद किरकिरे अपने छोटे रोल में भी याद रह जाते हैं – उनका किरदार सॉफ्ट है लेकिन गहराई लिए हुए।
🧠 Maalik की थीम – सिर्फ गैंगस्टर नहीं, एक सामाजिक दस्तावेज़

🏛️ जातिगत ढांचे और पॉलिटिक्स का असर
फिल्म का बड़ा प्लस पॉइंट इसका पॉलिटिकल सबटेक्स्ट है। Maalik एक ऐसी दुनिया दिखाता है जहां जातिगत भेदभाव, स्थानीय पॉलिटिक्स और समाज में असमानता अपराध को जन्म देती है। फिल्म हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या कोई व्यक्ति जन्म से अपराधी होता है या व्यवस्था उसे ऐसा बनने पर मजबूर करती है?
🔁 सत्ता का चक्र – दोस्ती, दुश्मनी और धोखा
फिल्म दिखाती है कि कैसे सत्ता पाने के लिए एक इंसान अपने सबसे करीबी दोस्तों को भी दुश्मन बना सकता है। फिल्म का सेकेंड हाफ इसी पॉलिटिक्स और पावर की लड़ाई पर केंद्रित है, जहां राजनैतिक गोटियाँ बिछाई जाती हैं, वफादार लोग गद्दार बनते हैं, और खुद मालिक बनने की कीमत चुकानी पड़ती है।
🎬 फिल्म का सिनेमाई पक्ष (Cinematography & Editing)
🎥 कैमरा वर्क और विज़ुअल अपील
फिल्म की शूटिंग में प्रयागराज की गलियों, पुराने घरों, रेलवे यार्ड, चौपाल और लोकल मंडियों का भरपूर इस्तेमाल किया गया है। कैमरा वर्क में नयापन है – खासकर लंबे शॉट्स और क्लोज़-अप फ्रेम्स में राजकुमार राव की आंखें कहानी कहती हैं। फिल्म का रंग-रूप (color grading) डार्क है, जो इसके गंभीर और क्राइम-थीम को सूट करता है।
✂️ एडिटिंग – सबसे बड़ा कमजोर पक्ष
जहां फिल्म का पहला हाफ आपको स्क्रीन से चिपकाए रखता है, वहीं दूसरा हिस्सा बहुत अधिक फैला हुआ और असंबद्ध लगता है। कई जगहों पर दृश्य अचानक कट हो जाते हैं या बहुत देर तक खिंचते हैं। यह दर्शकों को बोर कर सकता है। खासतौर पर ‘दिल थाम के’ गाना फिल्म की गति तोड़ देता है।
💬 संवाद – कहीं शायरी, कहीं तलवार
Maalik में डायलॉग्स एक हथियार की तरह इस्तेमाल होते हैं। कुछ जगहों पर संवाद बहुत ही दमदार हैं, जैसे:
- “जिसने चुप रहना सीख लिया, वो वक्त आने पर सबकी जुबान काट सकता है।”
- “खून से ज्यादा तेज़ चलती है सत्ता की स्याही।”
- “मालिक वो नहीं जो गद्दी पर बैठे, मालिक वो जो डर पैदा करे।”
हालांकि दूसरी तरफ कुछ जगहों पर संवादों में दोहराव और भारीपन भी नज़र आता है।
🎶 संगीत – ज्यादा नहीं, लेकिन जरूरत से ज़्यादा
फिल्म के गाने कहानी में कुछ खास योगदान नहीं देते। बैकग्राउंड म्यूज़िक ठीक-ठाक है, पर कोई थीम जो याद रह जाए, वो नहीं है। Huma Qureshi पर फिल्माया गया “दिल थाम के” गाना पूरी तरह से एक्स्ट्रा लगता है।
🎯 Maalik का असर – सिनेमाघर में कैसा रहा अनुभव?
पहला हाफ धमाकेदार है। दर्शक तालियाँ बजाते हैं, सीट से उछलते हैं। लेकिन सेकंड हाफ आते-आते बहुत से लोग मोबाइल देखने लगते हैं या बाहर जाने का प्लान बनाने लगते हैं। फिल्म क्लाइमेक्स तक पहुंचते-पहुंचते थकाती है, लेकिन एक पॉवरफुल एंडिंग के साथ आपको सीक्वल की उम्मीद छोड़ने नहीं देती।
#MaalikReview: ⭐️⭐️ Only watchable for #RajKummarRao’s solid performance. The rest is a dull, outdated gangster drama with weak direction and no grip.
— Vivek Mishra🧢 (@actor_vivekm89) July 11, 2025
Sadly, Raj deserves better.
Expected to open with a slow 1.5–2 Cr
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- कुछ लोग इसे राजकुमार राव की बेस्ट परफॉर्मेंस मानते हैं।
- वहीं कुछ इसे “बासी कहानी, मिक्सिंग मसाला” कहकर खारिज कर रहे हैं।
- ट्रेंडिंग में ये #MaalikReview और #RajkummarRao लगातार बना हुआ है।
फिल्म के अंत में जिस तरह से कहानी को अधूरा छोड़ा गया है और राजकुमार के किरदार में उबाल बचा है, उससे साफ है कि मेकर्स Maalik 2 बनाने की योजना में हैं। और अगर उस सीक्वल में बेहतर एडिटिंग और चुस्त कहानी हो, तो वो ज्यादा दमदार साबित हो सकता है।
✅ Maalik देखने के कारण:
- राजकुमार राव की अब तक की सबसे दमदार एक्टिंग
- रियलिस्टिक एक्शन और लोकेशन्स
- पॉलिटिकल सबटेक्स्ट और जातिगत संरचना की पड़ताल
- कुछ बहुत ही यादगार डायलॉग्स
❌ Maalik छोड़ने के कारण:
- बहुत लंबी और खिंची हुई दूसरी आधी
- कमजोर पुलिस किरदार
- ज्यादा गानों और ट्रैक्स की भरमार
- पुरानी बदले की कहानी का दोहराव
Maalik एक ऐसी फिल्म है जिसे आप राजकुमार राव के लिए एक बार ज़रूर देख सकते हैं। फिल्म में कुछ अनोखा नहीं है, लेकिन उसकी प्रजेंटेशन, परफॉर्मेंस और रॉ इमोशन्स इसे ऊपर उठाते हैं। अगर आप गैंगस्टर फिल्मों के फैन हैं, तो ये आपके लिए एक बढ़िया विकल्प हो सकता है।
⭐️⭐️⭐️ (3/5)
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